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संघ के 100 साल: पहले चार प्रचारकों की प्रेरक कहानी हेडगेवार के अक्षर शत्रु ने रखी थी नींव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने पर याद करते हैं उन पहले चार प्रचारकों को — बाबा साहब आप्टे, दादाराव परमार्थ, रामभाऊ जमगड़े और गोपालराव येरकुंटवार — जिन्होंने हेडगेवार के नेतृत्व में संघ की विचारधारा को जमीनी स्तर तक पहुँचाया और संगठन की नींव को मज़बूत किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का इतिहास केवल एक संगठन की कहानी नहीं, बल्कि एक विचार की यात्रा है — वह विचार जो आत्मनिर्भर, संस्कारित और संगठित भारत की दिशा में आगे बढ़ा।
इस यात्रा की शुरुआत 1925 में डॉक्टर केशव बलीराम हेडगेवार ने की थी, और कुछ वर्षों बाद उन्होंने ऐसे स्वयंसेवकों की टोली तैयार की जो पूरे देश में संगठन का विस्तार कर सके।
इन्हीं में से बने पहले चार प्रचारक — जिन्होंने संघ को दिशा, अनुशासन और निरंतरता दी।

 1. “अक्षर शत्रु” बाबा साहब आप्टे

उमाकांत केशव आप्टे, जिन्हें प्यार से बाबा साहब आप्टे कहा जाता था, डॉक्टर हेडगेवार के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक थे।
हेडगेवार उन्हें “अक्षर शत्रु” इसलिए कहते थे क्योंकि आप्टे हर बात को स्पष्ट, सटीक और निडर शब्दों में रखते थे।
उन्होंने प्रचारक जीवन की परिभाषा तय की — स्वयं के लिए कुछ नहीं, समाज के लिए सब कुछ।
उनकी ही अगुवाई में संघ ने गाँव-गाँव शाखाएँ शुरू कीं और राष्ट्रभावना को लोकजनों तक पहुँचाया।

 2. दादाराव परमार्थ

दादाराव ने शिक्षा और आराम का जीवन छोड़कर पूर्णकालिक प्रचारक बनने का संकल्प लिया।
वे सरल स्वभाव के, परन्तु अत्यंत दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे।
उन्होंने संघ की पहली शाखाओं को महाराष्ट्र और मध्यभारत में संगठित किया, जहाँ स्वयंसेवक सामाजिक कार्यों से जुड़ने लगे — जैसे विद्यार्थियों की सहायता, स्वच्छता अभियान और ग्रामसभा आयोजन।

 3. रामभाऊ जमगड़े

रामभाऊ जमगड़े का जीवन अनुशासन और निष्ठा का प्रतीक था।
उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य किया और संगठन के पहले “युवा प्रचारक प्रशिक्षण शिविर” की नींव रखी।
उनका मानना था — “संघ तभी मजबूत होगा जब गाँव जागेगा।”
उनकी मेहनत से संघ की शाखाएँ ग्रामीण भारत में गहराई तक फैलीं।

 4. गोपालराव येरकुंटवार

गोपालराव संघ के पहले ऐसे प्रचारक थे जिन्होंने प्रचारकों के प्रशिक्षण की पद्धति विकसित की।
उन्होंने कार्यकर्ताओं को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करने का सूत्र दिया — “शक्ति, श्रद्धा और सेवा।”
उनकी यह शिक्षाएँ आज भी संघ की प्रशिक्षण-प्रणाली की नींव मानी जाती हैं।


एक सदी की यात्रा — विचार से विराट तक

डॉ. हेडगेवार ने जो बीज बोया, उसे इन चार प्रचारकों ने सेवा, अनुशासन और त्याग के जल से सींचा।
आज संघ जब अपने सौ वर्ष पूरे कर रहा है, तो यह उन शुरुआती चार चेहरों की तपस्या का ही परिणाम है जिन्होंने यह दिखाया कि विचार शब्दों से नहीं, कर्मों से बढ़ता है।

इनकी कहानी यह सिखाती है कि एक संगठन का बल उसकी संख्या में नहीं, बल्कि उसके समर्पित कार्यकर्ताओं की भावना में छिपा होता है।
संघ के ये पहले प्रचारक न केवल एक संगठन के निर्माता थे, बल्कि राष्ट्र-भावना के जीवंत प्रतीक भी बने।