सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को पीरियड लीव की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई
हुई। कोर्ट ने कहा कि यह मामला अदालत में तय करने के लिए नहीं है, बल्कि
सरकारी नीति से जुड़ा मामला है। कोर्ट ने कहा कि हमारी तरफ से महिलाओं को
पीरियड लीव देने का फैसला महिलाओं के लिए हानिकारक होगा क्योंकि कंपनियां
महिलाओं को नौकरी देने से बचेंगीं। इसके साथ ही CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस
जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्राकोर्ट की बेंच ने केंद्र को निर्देश दिया कि वे
राज्यों और इस मामले से जुड़े सभी लोगों की सलाह लेकर एक मॉडल पॉलिसी तैयार
करें।यह याचिका वकील शैलेंद्र तिवारी ने लगाई है। उनकी तरफ से वकील राकेश
खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट में दलीलें पेश कीं।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि
यह लीव औरतों को काम करने के लिए कैसे प्रोत्साहित करेगी। ऐसी लीव मंजूर होने
से महिलाओं को काम से अलग कर दिया जाएगा। हम नहीं चाहते महिलाओं के साथ ऐसा
हो। क्योंकि यह मामला अन्य राज्यों की नीतियों से संबंधित समस्याएं उठाता है,
इसलिए कोर्ट के पास इस मामले में दखल देने की कोई वजह ही नहीं है। हालांकि,
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इजाजत दी कि वह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के
सेक्रेटरी और एडिशनल सॉलिसिटर ऐश्वर्य भाटी के पास जाएं। कोर्ट ने कहा कि हम
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सेक्रेटरी से निवेदन करते हैं कि वे नीतियों
के स्तर पर इस मामले को देखें और इससे संबंधित सभी स्टेकहोल्डर्स से चर्चा
करने के बाद पॉलिसी बनाने के बारे में सोचें। इसके पहले 24 फरवरी 2023 को
सुप्रीम कोर्ट ने पीरियड लीव की मांग करने वाली छात्राओं और कामकाजी महिलाओं
की याचिका खारिज की थी। तब भी कोर्ट ने यही कहा था कि यह मामला नीतिगत है,
इसलिए याचिकाकर्ता केंद्र के सामने अपनी बात रखें।