केंद्रीय गृह मंत्री
अमित शाह ने मंगलवार को राज्यसभा में
वंदे मातरम पर चर्चा की शुरुआत की।
इस दौरान उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में
वंदे मातरम की भूमिका का जिक्र किया।
साथ ही उन्होंने विपक्ष पर भी जमकर
निशाना साधा। शाह ने कांग्रेस के 1937
के अधिवेशन में वंदे मातरम के आखिरी
चार छंदों के इस्तेमाल रोके जाने के
प्रस्ताव पर भी बात की और पंडित नेहरू
की भूमिका पर कई सवाल उठाए। अमित
शाह ने इंडिया गठबंधन यानी विपक्ष पर
आरोप लगाया कि संसद में जब भी वंदे
मातरम का गान होता है तब उसके कई
सदस्य सदन से बाहर चले जाते हैं, जबकि
भाजपा के सभी नेता खड़े होकर इसका
उचित सम्मान करते हैं।
गृह मंत्री ने कहा कि कल कुछ सदस्यों
ने लोकसभा में प्रश्न उठाया था कि आज
वंदे मातरम पर चर्चा की जरूरत क्या है।
वंदे मातरम पर चर्चा की जरूरत जब वंदे
मातरम बना था, तब भी थी, आजादी के
समय भी थी, आज भी है और 2047
में जब आधुनिक भारत होगा, तब भी
रहेगी। क्योंकिवंदे मातरम में कर्तव्य और
राष्ट्रभक्ति की भावना है। तो जिन्हें वंदे
मातरम पर चर्चा की वजह समझ नहीं आ
रहा, उन्हें नए सिरे से सोचने की जरूरत
है।
शाह ने आगे कहा, “जिसकी
उद्घोषणा 150 साल पहले बंकिम
बाबू ने की, उसका भाव सदियों पुराना
है। भगवान राम ने कहा था माता और
मातृभूमि ईश्वर से भी बड़ी होती है।
मातृभूमि का महिमामंडन प्रभु श्रीराम ने
किया, शंकराचार्य ने किया और इसका
महिमामंडन आचार्य चाणक्य ने भी
किया। मातृभूमि से ज्यादा कोई चीज हो
नहीं सकती।
इसलिए उस काली रात जैसे
गुलामी के कालखंड में वंदे मातरम रोशनी
की तरह था।”
राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष
पूरे होने के अवसर पर मंगलवार को
राज्यसभा में चर्चा हो रही है। चर्चा की
शुरुआत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह
ने की। अपने संबोधन में अमित शाह
ने कहा, ‘ये महान सदन वंदे मातरम के
भाव के लिए, यशोगान के लिए और वंदे
मातरम को चिरंजीव बनाने के लिए चर्चा
करे और इस चर्चा के माध्यम से हमारे
देश के बच्चे, किशोर, युवा आने वाली
पीढ़ियों तक वंदे मातरम के आजादी के
लिए योगदान को याद करें। वंदे मातरम की
रचना में राष्ट्र के प्रति समर्पण का जो भाव
है, उसका आने वाले भारत की रचना में
योगदान, इन सभी चीजों से हमारी आने
वाली पीढ़ियां भी युक्त हों। इसलिए मैं
सभी का अभिनंदन करता हूं कि आज
यह चर्चा सदन में हो रही है।’
उन्होंने कहा, ‘जब वंदे मातरम की
चर्चा हो रही है, कल कुछ सदस्यों ने
लोकसभा में प्रश्न उठाया था कि आज
वंदे मातरम पर चर्चा की जरूरत क्या
है। वंदे मातरम पर चर्चा की जरूरत वंदे
मातरम के प्रति समर्पण की जरूरत, जब
वंदे मातरम बना था, तब भी थी, आजादी
के समय भी थी, आज भी है और 2047
में जब आधुनिक भारत होगा, तब भी
रहेगी। क्योंकिवंदे मातरम में कर्तव्य और
राष्ट्रभक्ति की भावना है।
तो जिन्हें वंदे
मातरम पर चर्चा की वजह समझ नहीं आ
रहा, उन्हें नए सिरे से सोचने की जरूरत
है।’
शाह ने कहा, ‘यह वंदे मातरम का
गान, गीत यह भारत माता को गुलामी की
जंजीरों से मुक्त करने का नारा बना था।
आजादी के उद्घोष का नारा बन चुका
था। आजादी के संग्राम का बहुत बड़ा
प्रेरणा स्त्रोत बना था। और शहीदों को
सर्वोच्च बलिदान देते वक्त अगले जन्म
में भी भारत में ही जन्म लेकर बलिदान की
प्रेरणा भी वंदे मातरम से ही मिलती है। वंदे
मातरम की दोनों सदनों में चर्चा से, इसके
गौरव गान से हमारे बच्चे, किशोर, युवा
और आने वाली कई पीढ़ियां वंदे मातरम
के महत्व को समझेंगी और उसे राष्ट्र के
पुनर्निर्माण का आधार भी बनाएगी।’
शाह ने कहा, ‘बंकिम चंद्र चटर्जी
की 7 नवंबर 1875 को वंदे मातरम
की उनकी रचना सामने आई थी। जब
रचना हुई तब कुछ लोगों को लगा कि
यह उत्कृष्ट साहित्य है। लेकिन देखते ही
देखते यह गीत देशभक्ति और राष्ट्रचेतना
का परिचायक बन गया। कब वंदे मातरम
की रचना हुई, इसकी पृष्ठभूमि सभी को
याद करनी चाहिए। सदियों तक इस्लामी
आक्रमण को झेलकर, अंग्जों क रे ी गुलामी
झेलने वाले देश के लिए इस गीत की रचना
बंकिम बाबू ने की थी। इसलिए वंदे मातरम
का प्रचार अपने आप ही होता चला गया।
तब न सोशल मीडिया था, न प्रसार के कोई
और तरीका।