वंदे मातरम पर
चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने इतिहास की उन परतों को
उधेड़ कर रख दिया, जो कांग्स को हमे रे शा
से असहज करती रही हैं। पीएम मोदी ने
कहा कि केवल मुस्लिम तुष्टीकरण
से डरकर कांग्रेस ने वंदे मातरम राष्ट्र
गीत का विभाजन स्वीकार कर लिया,
जबकि गुलामी के कालखंड में यही गीत
पूरे राष्ट्र की एकता का मूल मंत्र बनकर
उभरा था। उन्होंने उस घटनाक्रम का भी
उल्लेख किया, जिसमें नेहरू ने एक पत्र
में मुसलमानों के नाराज होने की बात
कहकर कांग्रेस की एक बैठक में वंदे
मातरम के कुछ पदों को छोड़ने का प्रस्ताव
पास किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने बताया
कि कांग्रेस के इस प्रस्ताव के खिलाफ उस
समय भी पूरे देश में प्रदर्शन हुए थे।
पीएम मोदी ने यह साबित करने का
प्रयास किया कि कांग्रेस आजादी के पूर्व
से ही मुस्लिम तुष्टिकरण में लगी हुई है
और आज भी वह इससे दूर नहीं हो पाई है।
कांग्रेस की इस नीति को भाजपा ने जमकर
उछाला और उसे इसका राजनीतिक लाभ
हुआ। बहुसंख्यक हिंदू उसके पक्ष में आते
गए और वह राजनीतिक तौर पर मजबूत
होती गई, जबकि मुस्लिम तुष्टिकरण के
आरोपों में घिरी कांग्रेस लगातार कमजोर
होती जा रही है।
अनेक राजनीतिक विश्लेषक मानते
हैं कि मुस्लिम तुष्टिकरण आज कांग्रेस
की ऐसी मजबूरी बन गया है जिसे वह न
छोड़ पा रही है, न पकड़ पा रही है। यदि वह
मुसलमानों के ज्यादा समर्थन में दिखती
है तो इससे हिंदू मतदाताओं के नाराज
होने और उनके भाजपा में जाने का खतरा
पैदा होता है। और यदि वह मुसलमानों
के मुद्दे पर सुस्त पड़ती है तो मुस्लिम वोट
बैंक खिसककर एआईएमआईएम, सपा,
बसपा-राजद जैसे दूसरे दलों को चला
जाएगा। विभिन्न राज्यों में यह हो भी चुका
है। ऐसे में मुसलमान कांग्रेस की बड़ी
दुविधा बनकर उभरे हैं।
मुस्लिम तुष्टिकरण पर हमेशा घिरी
कांग्रेस
दरअसल, मुस्लिम तुष्टिकरण वह
मुद्दा रहा है जिस पर कांग्स हमे रे शा से घिरती
रही है। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल
नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया
गांधी से लेकर राहुल गांधी तक सभी इन
आरोपों के घेरे में आते रहे हैं। भाजपा-
आरएसएस ने लगातार यह आरोप लगाया
कि कांग्स और गांध रे ी परिवार सत्ता हासिल
करने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण करता
रहा, जबकि पूरे देश को कांग्रेस की इस
नीति का नुकसान उठाना पड़ा। यहां तक
कि देश के विभाजन के लिए भी कांग्रेस
के कुछ नेताओं की मुस्लिम तुष्टिकरण
की सोच को ही जिम्मेदार माना जाता है।
महात्मा गांधी से लेकर पंडित नेहरू
तक पर मुसलमानों के तुष्टिकरण के
आरोप लगते रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा
गांधी पर भी मुस्लिमों को खुश करने के
लिए केंद्र सरकार की नीतियों को कमजोर
करने के आरोप लगे थे। राजीव गांधी ने
शाहबानो प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय
के निर्णय को पलटते हुए जिस तरह
कट्टरपंथी मुसलमानों को खुश करने
की कोशिश की, वह गलती कांग्रेस के
लिए नासूर साबित हुई। माना जाता है
कि इससे कांग्रेस को बाद की राजनीति
में भारी नुकसान हुआ और कांग्रेस फिर
कभी अपने दम पर सत्ता में नहीं आई।
राम मंदिर न जाने को भी मुस्लिम
तुष्टिकरण से जोड़ा
नेहरू-गांधी परिवार की राजनीतिक
विरासत इस समय राहुल गांधी के पास
है।
राहुल गांधी आज तक राम मंदिर नहीं
गए हैं। भाजपा का आरोप है कि केवल
मुसलमानों को खुश करने के लिए वे
आज तक राम मंदिर नहीं गए। भाजपा
प्रवक्ता एसएन सिंह ने अमर उजाला से
कहा कि राहुल गांधी और उनके परिवार
को कभी हिंदुओं की आस्था की चिंता
नहीं थी। वे राम मंदिर बनने से पहले भी
अयोध्या जा सकते थे। मंदिर के उद्घाटन
के बाद भी वे चाहते तो अयोध्या पहुंच
सकते थे। लेकिन वे आज तक अयोध्या
नहीं गए क्योंकि उन्हें डर है कि यदि वे
अयोध्या जाते हैें तो इससे मुसलमान
नाराज हो जाएंगे।
एसएन सिंह ने आरोप लगाया कि
कांग्रेस बाबरी के पक्ष में समर्थन करने
वाली पार्टी है। उसने सर्वोच्च न्यायालय
में भी राम मंदिर के विरोध में वकील खड़े
किए और भगवान राम को काल्पनिक
बताया। लेकिन बाबरी का समर्थन करने
वाले कांग्रेस में पूरी इज्जत के साथ ऊंचे
पदों पर बिठाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि
कांग्रेस का यह मुस्लिम प्रेम आज देश का
हिंदू देख भी रहा है और समझ भी रहा है।
ऐसे में कांग्रेस कीदाल अब गलने वाली
नहीं है।