केरल की
वायनाड सीट से चुनकर लोकसभा
पहुंचीं कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने
भी वंदे मातरम पर चर्चा में भाग लिया।
उन्होंने राष्ट्र निर्माण में इसकी भूमिका
को रेखांकित करते हुए कहा कि संसद
में इस समय ये चर्चा इसलिए कराई गई,
क्योंकि आने वाले समय में पश्चिम बंगाल
में विधानसभा चुनाव कराए जाने हैं।
प्रियंका गांधी ने संसद में आगे कहा कि
वंदे मातरम केवल भावना नहीं, बल्कि
देश की आजादी की लड़ाई की ताकत
और नैतिकता का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि इस गीत ने ब्रिटिश
साम्राज्य को भी झुकने पर मजबूर किया
था। प्रियंका ने कहा कि वंदे मातरम
नाम लेते ही स्वतंत्रता संग्राम की यादें
और उसका साहस सामने आ जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि 1930 के दशक में
सांप्रदायिक की राजनीति उभरी तब ये गीत
विवादित होने लगा। उन्होंने आगे कहा
कि 1937 में नेताजी कोलकाता में कांग्रेस
अधिवेशन का आयोजन कर रहे थे।
20
अक्तूबर का लेटर उन्होंने सुनाया, लकिे न
इससे पहले उन्होंने नेहरू को एक चिठ्ठी
लिखी थी, इसका पीएम मोदी ने जिक्र नहीं
किया।
प्रियंका ने कहा कि हम देश के लिए हैं,
आप चुनाव के लिए हैं। 17 अक्तूबर को
चिठ्ठी के जवाब में नेहरू ने 20 अक्तूबर
की चिठ्ठी में लिखा- मैंने तय किया है कि
मैं 25 अक्तूबर कोलकाता आऊंगा, टैगोर
से मिलूंगा। 28 अक्तूबर को कांग्रेस ने वंदे
मातरम् को राष्ट्रगीत घोषित किया। इस
कार्यसमिति की बैठक में सभी महापुरुष
मौजूद थे। सभी इस प्रस्ताव से खुश थे।
सहमत थे।
संसद में वंदे मातरम पर हो रही बहस
के बीच कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने
सवाल उठाया कि आखिर इसकी जरूरत
क्या थी। उन्होंने कहा कि यह गीत 150
साल से देश की आत्मा का हिस्सा रहा है
और 75 साल से आज़ाद भारत में जनता
के दिलों में बसता आया है।
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने
कहा कि संविधान सभा द्वारा स्वीकृत
वंदे मातरम के स्वरूप पर सवाल उठाना
रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, मौलाना
आजाद और भीमराव आंबेडकर जैसे
महान नेताओं का अपमान है। प्रियंका ने
कहा कि प्रधानमंत्री 12 साल से देश चला
रहे हैं, और यह वही अवधि है जितने साल
पंडित नेहरू ने आज़ादी कीलड़ाई में जेल
में बिताए थे। प्रियंका गांधी ने कहा कि
पंडित नेहरू ने 12 साल जेल में रहने के
बाद देश का 17 साल तक नेतृत्व किया
था। उन्होंने भाजपा पर नेहरू को बार-बार
निशाना बनाने का आरोप लगाते हुए कहा
कियदि सरकार को नेहरू पर चर्चा करनी
है तो स्पीकर की अनुमति लेकर लंबी
बहस करा ले। लकिे न उन मुद्दों पर बात भी
जरूरी है, जिनके लिए जनता प्रतिनिधियों
को संसद भेजती है। उन्होंने सवाल उठाया
कि बेरोजगारी, गरीबी और प्रदूषण जैसे
असली मुद्दों पर चर्चाक्यों नहीं हो रही है।