वोट बैंक हमेशा से ‘किंगमेकर’ रहा है। यही वजह है कि हर
चुनाव में इस वर्ग पर पकड़ बनाने की होड़ तेज हो जाती है। अब
समाजवादी पार्टी (सपा) ने दलितों को साधने के लिए एक नया
दांव चला है और वह है ‘वोट चोरी’ का।
भारती ने गाजीपुर और चंदौली जैसे जिलों में रात गुजारकर
अभियान चलाने का उदाहरण देते हुए कहा कि हम दलितों के
घर-घर जा रहे हैं। संविधान और आरक्षण की रक्षा का संदेश
देंगे और वोट चोरी रोकेंगे। सपा का यह अभियान सीधे तौर पर
भाजपा पर वार करता दिख रहा है। पार्टी के नेताओं का आरोप
है कि सत्तारूढ़ दल चुनावी तंत्र का दुरुपयोग कर दलितों की
राजनीतिक ताकत को कमजोर करता है।
वहीं, बसपा की घटती साख ने सपा को बड़ा मौका दे दिया है।
यही कारण है कि सपा पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक)
के समीकरण को और मजबूत करने के लिए ‘वोट चोरी’ को
चुनावी हथियार बना रही है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि
यह रणनीति भाजपा और बसपा दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी
कर सकती है। वरिष्ठ विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि
‘संविधान बचाओ’ और ‘आरक्षण बचाओ’ के बाद ‘वोट
बचाओ’ दलितों के बीच सबसे बड़ा नारा बन रहा है। सपा इसे
हवा देकर दलित राजनीति का नया केंद्र बनने की कोशिश कर
रही है।
मायावती की कमजोर पकड़ से बने शून्य को भरने के लिए
यह सबसे सटीक मौका है। दरअसल, कांग्रेस ने बिहार चुनाव में
वोट चोरी का मुद्दा उठाया था। राहुल गांधी ने इसे हथियार बनाया
और विपक्षी दलों को गोलबंद किया। अखिलेश यादव ने उसी
एजेंडे को यूपी की जमीन पर उतार दिया है। अब सपा का पूरा
फोकस बूथ स्तर तक दलितों को संगठित कर भाजपा के खिलाफ
एकजुट करने पर है। साफ है कि दलित की जमीन पर ‘वोट चोरी’
नया नारा बन चुका है। चुनावी अखाड़े में यह नारा कितना असर
दिखाएगा, इसका फैसला 2027 का चुनाव ही करेगा।