मेरठ (वि)। लिवर का स्वास्थ्य अक्सर नजर अंदाज कर दिया जाता है, जबकि यह अंग शरीर की कार्यप्रणाली को बनाए रखने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शरीर का सबसे बड़ा ठोस अंग होने के नाते लिवर कुल शरीर के भार का लगभग 1–2% हिस्सा होता है और यह कई जीवन-रक्षक प्रक्रियाओं में शामिल रहता है। यह विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकालता है, मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है, पाचन को नियमित करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूती प्रदान करता है।
हैरानी की बात है कि लिवर में खुद को पुनः उत्पन्न (रीजेनरेट) करने की अनोखी क्षमता होती है। हालांकि यह गुण लाभदायक है, लेकिन इसी कारण से लिवर डैमेज के शुरुआती संकेत अक्सर छुप जाते हैं। यही वजह है कि लिवर की बीमारियाँ धीरे-धीरे और चुपचाप बढ़ती हैं, और इनके लक्षण तब प्रकट होते हैं जब स्थिति काफी बिगड़ चुकी होती है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, वैशाली के लीवर ट्रांसप्लांट और बिलियरी साइंसेज, रोबोटिक सर्जरी, पीडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. राजेश डे ने बताया कि “लिवर डैमेज के शुरुआती संकेत अक्सर बहुत सामान्य लगते हैं, जैसे लगातार थकान, भूख में कमी, हल्का अपच, या टांगों में मामूली सूजन। ये लक्षण मामूली लग सकते हैं, लेकिन समय के साथ ये गंभीर रूप ले सकते हैं, जैसे पीलिया (त्वचा और आंखों का पीला पड़ना), पेट में सूजन (ऐसाइटिस), मानसिक भ्रम (एनसेफेलोपैथी), या खून की उल्टी होना, जो एडवांस लिवर डिजीज का संकेत हैं। जब तक ये लक्षण नज़र आते हैं, तब तक लिवर को काफी नुकसान हो चुका होता है और इलाज मुश्किल हो जाता है। कुछ समूहों में लिवर रोगों का खतरा अधिक होता है। अत्यधिक शराब पीने वाले भले ही वह केवल बीयर ही क्यों न हो, विशेष रूप से जोखिम में होते हैं। इसके अलावा, डायबिटीज़ और मोटापे से ग्रसित लोगों में भी लिवर से संबंधित समस्याएं विकसित होने की संभावना अधिक होती है, खासकर नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) के रूप में।
क्रॉनिक हेपेटाइटिस B या C से संक्रमित व्यक्तियों को भी लिवर इंफ्लेमेशन और सिरोसिस का खतरा बना रहता है। अमेरिका में हुई एक हालिया स्टडी में पाया गया कि डायबिटीज़ क्लीनिक में आने वाले लगभग 30% मरीजों में लिवर स्टिफनेस के संकेत पाए गए, जो ब्लड टेस्ट और इलास्टोग्राफी (लिवर की लोच को मापने वाली एक विशेष अल्ट्रासाउंड तकनीक) के ज़रिए सामने आए। लिवर की देखभाल के लिए समय पर जांच और रोकथाम बेहद ज़रूरी हैं।