रुद्रपुर। पेनक्रिएटाइटिस एक भयावह एवं
जानलेवा रोग है, जिसमें पेट के ऊपरी हिस्से
में असहनीय दर्द, उल्टी, तेजी से वजन कम
होना तथा अनियमित, अनियंत्रित ब्लड शुगर
आदि लक्षण देखने को मिलते हैं। आधुनिक
चिकित्सा में इसका समूल निवारण संभव नहीं
है और आकस्मिक उपद्रव के समय अस्पतालों
में आपात भर्ती, दर्द नाशक दवाइयाँ, एंजाइम्स
तथा घी, दूध, वसा युक्त तथा गरिष्ठ भोजन
के सेवन से तमाम उम्र मना किया जाता है।
बावजूद इसके, यह बीमारी बढ़ती चली जाती
है और लगभग 92% रोगी मात्र 10 साल तक
ही जीवित रह पाते हैं। पेनक्रिएटाइटिस रोगियों
में से 20 से 25% रोगियों को कैंसर होने की
संभावना बनी रहती है। 1970 के दशक में
मेरठ निवासी वैद्य चंद्र प्रकाश नेपरंपरागत
तांबा और गंधक को अपराजिता, देवडाली
और नींबू के रस में मर्दन कर, आयुर्वेद के
रसशास्त्र में वर्णित ‘गंधक जरना’ की प्रक्रिया
को विकसित कर लगभग 3 वर्षों में एक
औषधि तैयार की थी, जिसके द्वारा गंभीर
रूप सेपेनक्रिएटाइटिस रोग सेपीड़ित युवक
की चिकित्सा 1972 से 1973 में की गई थी।
उसके बाद धीरे-धीरे इस औषधि का निर्माण
एवं विकास किया गया।
वर्ष 1984 में वैद्य चंद्र प्रकाश जी के पुत्र ने
इस कार्य को जारी रखा और पेनक्रिएटाइटिस
रोग में उक्त औषध के चमत्कारिक प्रभाव
को देखते हुए वर्ष 1997 से इस बीमारी से
पीड़ित सभी रोगियों के आंकड़े इकट्ठा करने
शुरू किए। जिसमें प्रत्येक रोगी के आंकड़ों को
स्वतंत्र फाइल में संजोकर, विद्या चंद्र प्रकाश
फाउंडेशन की अनुसंधान इकाई दानपुर क्षेत्र
में संसद द्वारा अवलोकन किया गया है।
इन
आंकड़ों में मरीज की बीमारी को परीक्षण
कर बताने वाले अस्पतालों का नाम, बीमारी
के इतिहास तथा पूर्ववर्ती इलाज के बारे में
जानकारी, मरीज की आयु, लिंग, निवास,
कार्यक्षेत्र, व्यवसाय एवं खानपान तथा सोने-
जागने के विषय में विवरण डाला गया है।
इन आंकड़ों से कई चौंकाने वाले खुलासे
हुए हैं, जैसे—देश के दक्षिणवर्ती राज्यों
में प्रमुखता से होने वाली इस बीमारी का
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में वर्णन किया
गया है, लेकिन पढ़ाओ के आंकड़ों के अनुसार
सर्वाधिक मरीज उत्तर प्रदेश (423),
महाराष्ट्र (235), गुजरात (152), दिल्ली
(149), कर्नाटक (141), हरियाणा
(138) और उत्तराखंड (142) से शामिल
हैं। इस प्रकार, शराब और अनुवांशिकता को
इस बीमारी का मुख्य कारण बताया गया है,
जबकि पढ़ाओ में आने वाले मरीजों में 67
प्रतिशत मरीजों ने कभी भी शराब का सेवन
नहीं किया, और 20% मरीज यदाकदा शराब
का सवन करन वाल थे । कुल 5 प्रतिशत मरीज
अनुवांशिकता का इतिहास रखते थे।
इसी प्रकार, पेनक्रिएटाइटिस सेपीड़ित
2242 रोगियों में से 1165 मरीज विगत 28
वर्षों में पूरी तरह से लाभान्वित होकर सामान्य
जीवन जी रहे हैं। वैद्य बालेंदु प्रकाश ने बताया
कि नहीं ठीक होने वालों में 34 रोगी ऐसे भी हैं
जिन्होंने दवा तो ली, पर खाई नहीं, और कुछ
रोगी इतनेजटिल थेकि वे इलाज शुरू करने
के 5 से 10 दिन में ही चल बसे। परंतु फिर
भी, मिट्टी के चूल्हों और हंडिया में लकड़ीपर
परंपरागत रूप स बनी यह दवाई अरबों-खरबों े
के अनुसंधान के बाद बनी हुई एलोपैथिक
दवाइयों से सैकड़ों गुना बेहतर है। वैद्य बालेंदु
ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा आयुर्वेद को विशेष
बढ़ावा दिया गया है। साथ ही ‘जय जवान,
जय किसान, जय विज्ञान’ के साथ ‘जय
अनुसंधान’ का नारा भी दिया गया है। उन्होंने
सांसदों से अनुरोध किया किपेनक्रिएटाइटिस
रोग में उनके आविष्कार को, जिसको भारतीय
पेटेंट वर्ष 2024 में मिल चुका है, वैज्ञानिक
रूप सेविकसित करने में उनकी मदद करें,
जिससेचिकित्सा के क्षेत्र में भारत नोबेल
प्राइज का दावा ठोक कर भारत को विश्वगुरु
बनाने में सहयोग कर सके।
इस अवसर पर सांसद महोदय न इनेर्गेनिक
पदार्थों की, बिना किसी रसायन को मिलाए,
जांच करन वाली आधुनिक तकनीक एक्स-रे
डिफ्रैक्टोमीटर का औपचारिक उद्घाटन भी
किया। जापान के बने इस उपकरण द्वारा 3
वर्ष में बनने वाली औषधि के बदलावों को
बखूबी देखा और समझा जा सकता है। वैद्य
बालेंदु ने बताया कि यह उपकरण मुंबई स्थित
एक फार्मा कंपनी (IPCA Laboratories)
ने CSR स्कीम के तहत उन्हें भेंट दिया है।
इसकी कीमत लगभग डेढ़ करोड़ है। इसी
तरह, सांसद महोदय ने आयुर्वेदिक दवाइयों
के निर्माण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण मर्दन क्रिया
को सुचारू रूप से संचालित करने वाली,
कंप्यूटर-संचालित ‘पार्टिकल इम्यूनाइज’ की
कार्यविधि को भी समझा।
उन्होंनेचिकित्सा, औषधि निर्माण और
अनुसंधान सेजुड़े वैद्य बालेंदु प्रकाश, वैद्य
शिखा प्रकाश, नेहा नेगी, सार्थक मारिया,
संजीव, वैद्य अनिल, वैद्य सोनी तथा आयुर्वेद
के महत्वपूर्ण अंग ‘आहार’ को सुचारू रूप
से संचालित करने वाली श्रीमती ललिता
आदि का आभार प्रकट किया और भूरी-भूरी
प्रशंसा की, तथा भारत की इस प्राचीनतम एवं
निरंतर प्रयोगशील परंपरा को जीवित रखने
के लिए सराहना की। अंत में, सांसद महोदय
ने उत्तराखंड की सीमा से सटेविद्या बालेंदु
प्रकाश की ‘रसशाला’ में केसर के पौधे का
रोपण किया। उन्होंने गौशाला, मत्स्य पालन
और रसायनशाला के हर पहलू का निरीक्षण
किया। वहाँ श्रीमती गोपा इंदु, सुनील शर्मा,
पंकज, गीतू और परवेश ने उनका स्वागत
किया।