नई दिल्ली (एजेंसी)। संयुक्त राष्ट्र
जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की
मंगलवार को जारी नई रिपोर्ट के अनुसार,
नौकरी की असुरक्षा, बच्चों की देखभाल
में कमी और खराब स्वास्थ्य के कारण
लोगों के बच्चों को जन्म देने की दर कम
हो रही है। स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन
(एसओडब्लूपी) रिपोर्ट से पता चलता
है कि लाखों लोग शारीरिक संबंध,
गर्भनिरोधक और परिवार शुरू करने के
बारे में अपनी मर्जी से फैसला नहीं ले पा
रहे हैं। उन्हें पूरी जानकारी या मदद नहीं
मिल पा रही है।
रिपोर्ट कहती है कि लोगों को डरने की
जरूरत नहीं है कि जन्मदर बहुत कम हो
रही है, बल्कि हमें इस बात पर ध्यान देना
चाहिए कि हर कोई अपनी इच्छानुसार
परिवार बनाने में सक्षम हो।
यह रिपोर्ट यूएनएफपीए और यू-गोव
की 14 देशों में की गई सर्वेक्षण पर
आधारित है, जिसमें भारत भी शामिल है।
इस सर्वेक्षण में कुल 14,000 लोगों को
शामिल किया गया, जिन्होंने बताया कि
भारत में लोग सेहत और परिवार से जुड़े
फैसले लेने में कई तरह की दिक्कतों का
सामना करते हैं।
लगभग 40 प्रतिशत लोगों का कहना
है कि पैसों की कमी सबसे बड़ी समस्या
है। 21 प्रतिशत लोगों का कहना है कि
नौकरी की असुरक्षा की वजह से वे बच्चे
की सोच नहीं पा रहे हैं। 22 प्रतिशत
लोग अपने रहने के लिए सही जगह न
मिलने की वजह से परेशानी में हैं। वहीं,
18 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनके
पास भरोसेमंद चाइल्डकेयर नहीं है। ये
सब वजहें हैं, जो लोगों को माता-पिता
बनने से रोक रही हैं।
इसके अलावा, खराब सेहत की वजह
से 15 प्रतिशत लोग बच्चे नहीं कर पा रहे
हैं।
13 प्रतिशत लोग बांझपन की समस्या
से जूझ रहे हैं। वहीं, 14 प्रतिशत लोगों
के पास गर्भावस्था से संबंधित देखभाल
तक पहुंच नहीं है। जलवायु परिवर्तन
और राजनीतिक-सामाजिक अस्थिरता
की वजह से लोग अपने भविष्य को लेकर
चिंतित रहते हैं, जिससे वे परिवार बढ़ाने
की योजना नहीं बना पाते। करीब 19
प्रतिशत लोगों पर उनके साथी या परिवार
वाले दबाव डालते हैं कि वे अपनी इच्छा
से कम बच्चे करें।
यूएनएफपीए इंडिया प्रतिनिधि एंड्रिया
एम. वोजनार ने कहा, “भारत में अब
महिलाएं पहले से कम बच्चे पैदा करती
हैं। 1970 में हर महिला के लगभग पांच
बच्चे होते थे, लेकिन आज यह संख्या
लगभग दो हो गई है। यह बदलाव इसलिए
हुआ क्योंकि लोगों को अच्छी शिक्षा मिली
है और उन्हें परिवार नियोजन की सही
जानकारी और सेवाएं मिलने लगी हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “इस वजह से मातृ
मृत्यु दर में भारी कमी आई है, जिसका
मतलब है कि आज लाखों माताएं जीवित
हैं, अपने बच्चों की परवरिश कर रही हैं
और अपने समाज को मजबूत बना रही हैं।
लेकिन, अलग-अलग राज्यों, जातियों में
सबके हालात एक जैसे नहीं हैं।”
भारत ने प्रजनन दर को कम करने
और गर्भधारण से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं
में बेहतरीन काम किया है, लेकिन,
एसओडब्लूपी रिपोर्ट में बताया गया
है कि अलग-अलग राज्यों में जन्म दर
और स्वास्थ्य के मामले में अभी भी कई
असमानताएं हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार,
झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों
में अब भी महिलाओं के बच्चे ज्यादा होते
हैं। लेकिन दिल्ली, केरल और तमिलनाडु
जैसे अन्य राज्यों में प्रजनन दर कम है।
रिपोर्ट के मुताबिक, ये दो तरह की
स्थिति इसलिए है क्योंकि हर जगह लोगों
के पास काम करने के मौके, अच्छे
स्वास्थ्य की सुविधाएं, पढ़ाई के स्तर
और समाज में महिलाओं के साथ बर्ताव
अलग-अलग होता है। इन सब चीजों
की वजह से सामाजिक मानदंडों में अंतर
आता है।
वोजनार ने कहा, “जब हर किसी
को अपनी शादी, बच्चे करने या न करने
का फैसला लेने की आजादी मिले, तभी
असली फर्क नजर आता है। भारत के
पास एक खास मौका है कि वह दिखा
सके कि कैसे लोगों के अधिकार और
अच्छी आर्थिक स्थिति साथ-साथ बढ़
सकते हैं।”
रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है
कि असल समस्या यह नहीं है कि हमारी
आबादी कितनी बड़ी है, बल्कियह है कि
बहुत से लोग अपनी जिंदगी में यह फैसला
करने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं कि
वे कब, कैसे और कितने बच्चे चाहते हैं।
यह बात कह रही है कि हमें सभी के
लिए प्रजनन से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं
को बढ़ाना चाहिए। जैसे कि सभी को
गर्भनिरोधक, सुरक्षित गर्भपात, मातृत्व से
जुड़ी अच्छी देखभाल और बांझपन का
इलाज मिलना चाहिए। साथ ही, हमें ऐसी
मुश्किलों को खत्म करना होगा, जो इन
सेवाओं को पाने में रुकावट डालती हैं।
इसके लिए हमें बाल देखभाल, शिक्षा,
आवास और काम के लचीले नियमों में
निवेश करना होगा। साथ ही, ऐसी नीतियां
बनानी होंगी, जो सबको शामिल करें और
सबके लिए समान अवसर दें।