नई दिल्ली (एजेंसी)। उपराष्ट्रपति
जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका की
भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने
कहा कि संविधान के अनुच्छेद 145(3)
के तहत सुप्रीम कोर्ट को केवल संविधान
की व्याख्या करने का अधिकार है और
वह भी कम से कम पांच जजों की पीठ
द्वारा। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा,
“हम ऐसी स्थिति नहीं ला सकते, जहां
राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाए। संविधान
के तहत सुप्रीम कोर्ट का अधिकार केवल
अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान
की व्याख्या करना है।’’ उन्होंने कहा कि
जब यह अनुच्छेद बनाया गया था, तब
सुप्रीम कोर्ट में केवल आठ जज थे और
अब 30 से अधिक हैं।
हालांकि, आज
भी पांच जजों की पीठ ही संविधान की
व्याख्या करती है। उपराष्ट्रपति ने पूछा कि
क्या यह न्यायसंगत है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने गहरी चिंता
व्यक्त करते हुए कहा, “मैंने कभी नहीं
सोचा था कि राष्ट्रपति को कोर्ट द्वारा
निर्देशित किया जाएगा। राष्ट्रपति भारत
की सेना की सर्वोच्च कमांडर हैं और
केवल वही संविधान की रक्षा, संरक्षण
और सुरक्षा की शपथ लेते हैं। फिर उन्हें
एक निश्चित समय में निर्णय लेने का
आदेश कैसे दिया जा सकता है।”
उन्होंने कहा, “हाल ही में जजों ने
राष्ट्रपति को लगभग आदेश दे दिया
और उसे कानून की तरह माना गया,
जबकि वे संविधान की ताकत को भूल
गए। अनुच्छेद 142 अब लोकतांत्रिक
शक्तियों के खिलाफ एक ‘न्यूक्लियर
मिसाइल’ बन गया है, जो चौबीसों घंटे
न्यायपालिका के पास उपलब्ध है।”
धनखड़ ने ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ सिद्धांत
को लेकर भी पूर्व न्यायाधीशों पर निशाना
साधा।
उन्होंने एक पूर्व जज द्वारा लिखित
पुस्तक के विमोचन समारोह का जिक्र
किया, जिसमें इस सिद्धांत की प्रशंसा
की गई थी। उन्होंने कहा, “केशवानंद
भारती केस में 13 जजों की पीठ थी और
फैसला 7 अनुपात 6 से हुआ था। इसे अब
हमारी रक्षा का आधार बताया जा रहा है,
लेकिन उसी के दो साल बाद 1975 में
आपातकाल लगाया गया। लाखों लोगों
को जेल में डाला गया और सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि आपातकाल के दौरान मौलिक
अधिकार लागू नहीं होंगे। फिर इस सिद्धांत
का क्या हुआ?”
उन्होंने सवाल उठाया कि जब
आपातकाल के दौरान सर्वोच्च न्यायालय
ने नौ उच्च न्यायालयों के फैसलों को पलट
दिया, तब ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ सिद्धांत की
रक्षा क्यों नहीं की गई। उन्होंने कहा, “अब
जज कानून बनाएंगे, कार्यपालिका की
भूमिका निभाएंगे, संसद से ऊपर होंगे और
उनके लिए कोई जवाबदेही नहीं होगी। हर
सांसद और उम्मीदवार को अपनी संपत्ति
घोषित करनी होती है, लेकिन जजों पर
यह लागू नहीं होता।” धनखड़ ने इस बात
पर भी अफसोस जताया कि जनता इन
सवालों को नहीं उठाती और उन्हें गुमराह
करने वाली कथाएं परोसी जाती हैं।