स्वास्थ्य

स्ट्रोक और आधुनिक इलाज की भूमिका: समय बचाएँ, जीवन बचाएँ

स्ट्रोक तब होता है जब दिमाग़ के किसी हिस्से में खून का बहाव अचानक रुक जाता है या कोई नस फट जाती है, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएँ कुछ ही मिनटों में मरने लगती हैं।

स्ट्रोक तब होता है जब दिमाग़ के किसी हिस्से में खून का बहाव अचानक रुक जाता है या कोई नस फट जाती है, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएँ कुछ ही मिनटों में मरने लगती हैं। इसके परिणामस्वरूप अचानक शरीर के एक हिस्से में कमजोरी, बोलने या समझने में परेशानी, चक्कर आना या बेहोशी जैसे गंभीर लक्षण दिखाई दे सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, स्ट्रोक मृत्यु और विकलांगता का एक प्रमुख कारण है, लेकिन अगर समय पर इलाज मिल जाए, तो इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

भारत में स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और अब यह केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि युवाओं में भी देखा जा रहा है। इसके प्रमुख कारण हैं — उच्च रक्तचाप (ब्लड प्रेशर), मधुमेह (डायबिटीज), धूम्रपान, मोटापा, बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल, तनाव और व्यायाम की कमी। इसके अलावा अनियमित दिल की धड़कन (Arrhythmia) भी स्ट्रोक का खतरा बढ़ा सकती है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, तनाव नियंत्रण और तंबाकू व शराब से दूरी रखकर स्ट्रोक से बचाव संभव है।

मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, साकेत के न्यूरोइंटरवेंशनल सर्जरी विभाग के कंसल्टेंट डॉ. देवाशीष कामरा ने बताया कि “स्ट्रोक कई बार अचानक हो जाता है और ऐसी स्थिति में मरीज को तुरंत अस्पताल पहुंचाना बेहद ज़रूरी होता है, क्योंकि हर मिनट की देरी दिमाग़ को अधिक नुकसान पहुंचाती है।” उन्होंने बताया कि आज के समय में स्ट्रोक के इलाज में काफी तकनीकी प्रगति हुई है। अब कई मामलों में बिना खुली सर्जरी के ही इलाज संभव हो गया है, जिसे न्यूरोइंटरवेंशन कहा जाता है।

इस प्रक्रिया में डॉक्टर पतली नलियों (कैथेटर) के माध्यम से पैर या कलाई की नस से दिमाग तक पहुंचकर अवरोध या रक्तस्राव का उपचार करते हैं। अगर स्ट्रोक खून के थक्के (क्लॉट) के कारण हुआ है, तो डॉक्टर थ्रॉम्बेक्टॉमी या क्लॉट रिट्रीवल नामक प्रक्रिया के ज़रिए उस थक्के को निकाल सकते हैं। यदि यह प्रक्रिया कुछ घंटों के भीतर कर दी जाए, तो मरीज की बोली, चलने-फिरने की क्षमता और दिमाग़ी कार्यक्षमता काफी हद तक वापस लाई जा सकती है।