भक्ति

आस्था की कांवड़ यात्रा आध्यात्मिकता का केंद्र पुरा महादेव

विश्व में भारत धार्मिक आस्थाओ और विश्वास का केन्द्र रहा है। प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म के अनुसार आचरण और व्यवहार करता रहा है।

विश्व में भारत धार्मिक आस्थाओ और विश्वास का केन्द्र रहा है। प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म के अनुसार आचरण और व्यवहार करता रहा है। पर्व, मेले उत्सव, धार्मिक यात्राएं न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत एवम् धरोहरों व्यवस्थाओं को प्रचारित प्रसारित करती हैं बल्कि उन्हें पल्लवित और पुष्पित भी करती हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी हमारी धार्मिक मान्यताओं को बरकरार रख सके और उसे धर्म के अनुसार आगे बढ़ सके। यह पर्व ही है जो हमारी अनेकता में एकता की संस्कृति को घोषित करते हैं तभी हमारा भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश कहलाता है। जी हां आज मैं यहां उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण मेला पुरा महादेव एवं धार्मिक कांवड़ यात्रा पर ही चर्चा करना चाह रहा हूं। यह कांवड़ मेला कृष्णा नदी के तट पर पुरा महादेव गांव में सदियों से हमारी पुरानी गंगा जमुना तहजीब को अपने में ओढे हुए धार्मिक छटा को बिखरते हुए सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे को मजबूत कर रहा है कभी यह मेला जनपद मेरठ में ही आता था लेकिन आज या मेला जनपद बागपत का अलग अस्तित्व सृजित होने के कारण जनपद बागपत में आयोजित होने लगा है। पुरा महादेव जो मेरठ से लगभग 30 किलोमीटर दूर और हरिद्वार से लगभग 155 किलोमीटर दूरी पर है। पुरा महादेव मेला आज आध्यात्मिक को सांस्कृतिक विरासत का केंद्र बना हुआ है। यह शिव भक्ति का ऐसा केंद्र बिंदु बन गया है कि जिसमें पूरे उत्तर भारत की जनता इसके अमृतमयी रस में सराबोर हो जाती है।

हरिद्वार से उत्तराखंड हरियाणा दिल्ली उत्तर प्रदेश राजस्थान छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशो के शिव भक्त कांवरिया बम बम भोले के शंखनाद का उद्घोष करते हुये केसरिया रंग में सराबोर होकर आगे बढ़ते जाते हैं। साथियों पुरानी कथाओं के अनुसार पुरा महादेव पर जहां इसका मंदिर का परिसर है वहां पर बताया जाता है कि भगवान विष्णु के अवतारी भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव भगवान शिव की आराधना की थी और वहां उन्होने शंकर के इस मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर के इस स्थान को पवित्र मानते हुए श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को यहां मेले का आयोजन किया जाता है। इस स्थान पर मेले का आयोजन वर्ष में दो बार किया जाता है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण श्रावण मास का आयोजित होने वाला मेला है। कुछ वर्ष पूर्व तक यह मेला एक साधन स्वरूप में ही लगाया जाता था लेकिन अब मेले का स्वरूप उसका आकार इतना बढ़ गया है कि कम से कम 10 दिन पूर्व ही हरिद्वार दिल्ली मार्ग को आवागमन के लिए पूरी तरह से बंद करना पड़ता है तथा उनके आवागमन के रास्ते के लिए रूट को बदल दिया जाता है ताकि सुगमता आवागमन में बनी रहे। शिव भक्त कांवरिया हरिद्वार से अपने आराध्य देव भगवान शिव पर जलाभिषेक करने के लिए वहां पवित्र गंगा नदी से जल लेकर उसको अपने कंधे पर रखकर बम बोल बम का जयनाद करते हुए पैदल ही अपने गंतव्य की तरफ बढ़ते जाते हैं ताकि वह अपने गंतव्य पर पहुंचकर भगवान शिव को यह गंगाजल समर्पित कर सके और अपने अनुष्ठानों में को भाग ले सके। उनकी आस्था के सामने व्यवस्था की कोई मान्यता नहीं रहती है। जबकि प्रत्येक वर्ष पुलिस और प्रशासन द्वारा बेहतर व्यवस्था बराबर की जाती है। यह कावड़ मेला अपने आप में ऐसी धार्मिक आस्था लिए हुए हैं की जनता जनार्दन मानती है कि कंधे पर जल लेकर आने वाले केसरिया वस्त्र धारण करने वाले यह मात्र कांवडियां ही नहीं है बल्कि उनके इस स्वरूप में भगवान शिव दिखाई देते हैं। महिलाएं तथा बच्चे उनके पैरों को छूकर आशीर्वाद लेते हैं। वह समझते हैं कि अब उन्हें शिव का आशीर्वाद प्राप्त हो गया है।

लगभग 155 किलोमीटर की लंबी यात्रा के लिए तपती धूप में कंधे पर जल रखकर शिवभक्त कांवडिये निकल पडते है जैसे-जैसे वह आगे बढते जाते है उनके पैरो में छाले पडने शुरू हो जाते है और वैसे-वैसे ही उनका उत्साह बढ़ता जाता है। वह बम बोल बम का उद्घोष करते हुये तथा अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए पुरा महादेव की तरफ बढते रहते है उस समय उनका सिर्फ एक ही लक्ष्य होता हैं कि पुरा महादेव पर पहुंचकर पवित्र गंगाजल से भगवान शिव को जलाभिषेक करें। बहुत से शिव भक्त कांवरिया गंगोत्री, गौमुख व ग्लेश्यिर से भी पवित्र गंगाजल लेकर पैदल ही पवित्र धारा पुरा महादेव पर पहुंचकर अपने आराध्य इष्ट देव शिव की पिंडी पर जलाभिषेक करते है। वास्तव में यह एक ऐसा मेला है जो पूरे भारत को शिवमय बना देता है। यह भी देखा जाता है कि बहुत से शिवभक्त कावंडिये साईकिल, स्कूटर, कार से भी पवित्र गंगाजल लेकर अपने आराध्य देव शिव की पिंडी पर जलाभिषेक करते है। यह बहुत प्रचलित रूप से देखा जा रहा है कि आजकल डाक कांवड की प्रथा भी बहुत तेजी से चल रही है जिस पर श्रद्धालु लोग बडी से बडी छाकिंया अपने ट्रक आदि में लगाकर चलते है और यह डाक कांवड लगातार बिना रूके अपने गंतव्य की तरफ बढती रहती है। जब इस क्षेत्र में माईक पर वह भगवान शिव के भजन आदि का उद्घोष करते है तो पूरा क्षेत्र उस रस में सराबोर हो जाता है। शिवभक्तों की इस पवित्र कांवड यात्रा को देखते हुये पुलिस, शासन और प्रशासन द्वारा उनकी सुरक्षा, उनके स्वास्थ्य, उनके खानपान आदि के लिए बेहतर से बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है। इसके लिए उत्तराखंड हरियाणा उत्तर प्रदेश दिल्ली आदि प्रदेशो के वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी समन्वित बैठक कर आपस में सामन्जस्य सुरक्षा व्यवस्था के लिए बनाते है ताकि व्यवस्थाओं को बेहतर बनाया जा सके। काफी वर्षों से हम देखते हैं कि प्रशासन सड़कों को दुरुस्त करता है तथा उन ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों को भी पूरी तरह गड्ढा मुक्त करता है जहां से शिव भक्ति कांवरिया गुजरते हुए पुरा महादेव पर जाते हैं यही नहीं कांवडियो के रास्ते पर आने वाले वृक्षो की टहनियों को काटा जाता है झाडियो को हटाया जाता है तथा गंगा नहर के तरफ बैरिकेडिंग की जाती है ताकि कोई कांवरिया किसी भी तरह से परेशानी का सामना न कर सके साथ ही सड़क से हटकर थोड़ी दूरी के बाद विभिन्न कांवड़ शिविर भी लगाए जाते हैं। यह शिविर विभिन्न सामाजिक संस्थाएं आयोजित करती है जिनमें शिवभक्त कांवरियों के लिए बेहतर से बेहतर खाना और आराम करने की अच्छी व्यवस्था रखी जाती है। रास्ते में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था अच्छी की जाती है और सफाई सफाई भी अच्छी की जाती है साथ ही कांवड़ियों की स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुए जगह-जगह पर स्वास्थ्य शिविरों का भी आयोजन किया जाता है। इसी के साथ प्रकाश व्यवस्था भी अच्छी की जाती हैं। आस्था की इस यात्रा को कुशलतापूर्वक संपन्न कराने के लिए विभिन्न इंतेजाम, जोन और सेक्टर बनाकर उसमें पुलिस प्रशासन के अधिकारियों की ड्यूटी लगाकर कराए जाते हैं इतना ही नहीं इस यात्रा और मेले की व्यवस्थाओं की समीक्षा प्रदेश स्तरो पर प्रदेशों के मुख्यमंत्री के द्वारा भी की जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि पुरा महादेव ग्राम में जहां शिव भक्त कांवरिया जलाभिषेक करते हैं। पूरे गांव में इन कांवरियों के ठहरने की एक बेहतर व्यवस्था घर-घर की जाती है सा ही आसपास के गांव के लोग भी उनकी सेवाओं में लगे रहते हैं ताकि कुछ पुण्य उन्हें भी सेवा करने से प्राप्त हो सके। आस्था के केन्द्र पुरा महादेव पर जलाभिषेक करने के बाद सभी शिव भक्त कांवडियां अपने-अपने ग्रामो में जाकर अपने शिवालयो पर भी जलाभिषेक करते है और ग्राम में उनकी पूरी शोभायात्रा निकाली जाती है तब ही वह अपने घरो में प्रवेश करते है।

कांवड़ मेला आस्था और विश्वास का ऐसा समागम है कि अब इसमें बड़े, बच्चे, बूढ़े और महिलाएं भी हरिद्वार से पैदल चलकर कंधे पर जल रखकर लाती है और भगवान आराध्य देव शिव को जल समर्पित करती है। लाखों लोग हरिद्वार से एक साथ कांवड उठाते हैं जैसा कि मैंने कई वर्षों तक पुरा महादेव मेले में सरकारी सेवा में रहते हुए सब देखा है जब वह कांवरिया पुरा महादेव मंदिर परिसर में आते है तो वास्तव में जनसैलाब की एक लहर सी उठती दिखती है सच तो यह है की व्यवस्था को स्वयं भगवान शिव ही संभालते हैं। आस्था का आलम यह है कि बड़े-बड़े अफसर भी कांवड़ लाते हुए देखे गये हैं और आकर पुरा महादेव पर जलाभिषेक करते हैं। वर्ष प्रतिवर्ष कांवड यात्रा के लिए शिवभक्तो की संख्या बढ रही है ज्ञात यह हुआ है कि 2024 में 30 मिलियन लोगो ने हरिद्वार से कांवड उठाई थी। यह कांवड़ यात्रा पुरा महादेव तक ही सीमित नही है यह यात्रा उ0प्र0, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ, उडीसा, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशो में भी इसी भक्ति के साथ आयोजित होती है। उ.प्र. में प्रयागराज, वाराणसी आदि में इस यात्रा में ऐसा ही समागम दिखाई देता है। उन प्रदेशा में आसपास की पवित्र नदियों से जल कंधे पर लेकर अपने शिवालियों में भगवान शिव की पिंडी पर जलाभिषेक करते हैं। कांवड यात्रा अटूट आस्था और समर्पण का प्रतीक है। विश्वास की यह यात्रा या धार्मिक मेले हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक तथा आध्यात्मिक आस्थाओं को पूरी तरह से मजबूत कर रहे हैं सबसे बड़ी बात यह है की इन मेलों में मुस्लिम भाई भी शिव भक्त कांवरियों की सेवा में लगे रहते हैं जो यह दिखाता है कि यह आयोजन भाईचारा और सांप्रदायिक सौहार्द का वातावरण मजबूत कर रहे हैं हमारी इस आस्था का सीधा प्रभाव पश्चिम के देशों पर भी पड़ा है और इन्हीं आस्थाओं के कारण हमारा देश विश्व गुरु के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि भारत आस्थाओं का देश है।