चुनाव सुधार
पर चर्चा के दौरान समाजवादीपार्टी के
राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव ने
कहा कि जिस दिन चुनाव आयोग के
कंपोजिशन के बारे में संशोधन किया
गया, मुख्य न्यायाधीश को हटाकर
उनके बदले एक कैबिनेट मिनिस्टर
को शामिल किया गया। इससे जनता
में एक संदेश गया कि यह इलेक्शन
कमीशन की निष्पक्षता को खत्म
करने का एक प्रयास है। उन्होंने कहा
कि पुरानी व्यवस्था फिर से लागू की
जाए, जिसके तहत चुनाव आयुक्त
की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश,
प्रधानमंत्री और लोकसभा के नेता
प्रतिपक्ष होते थे। राम गोपाल यादव
ने राज्यसभा में बोलते हुए कहा कि
चुनाव से जुड़े हुए अधिकारियों और
कर्मचारियों की नियुक्ति धार्मिक या
जाति के आधार पर नहीं होनीचाहिए।
उन्होंने कहा कि इन सभीचीजों से
अलग हटकर ये नियुक्तियां निष्पक्ष
व पारदर्शी होनी चाहिए। उन्होंने
सदन में कहा कि उत्तर प्रदेश में कुछ
उपचुनाव हुए थे।
इन चुनावों के जो
बीएलओ थे, उनमें से जितने भी
यादव और मुसलमान बीएलओ थे,
उनको एक-एक करके हटा दिया
गया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग
की जानकारी में यह विषय लाया
गया। लिस्ट में पहले लोगों का नाम
था लेकिन बाद में ये नाम हटा दिए
गए। केवल कुंदरकी में गलती से एक
मुस्लिम बीएलओ रह गया।
उन्होंने कहा कि पीपुल्स
रिप्रजेंटेशन एक्ट के मुताबिक मतदाता
को बूथ तक लाना या रिश्वत देना एक
अपराध है। यदि यह सिद्ध हो जाता है
तो चुनाव रद्द हो जाता है। लेकिन हमने
देखा कि ट्रेन में किस तरह से लोग
आ रहे थे। उन्होंने कहा कि बिहार में
चुनाव से ठीक पहले जिस तरह से
पैसे बांटे गए, अगर टीएन शेषन जैसे
चुनाव आयक्तु होते तो चुनाव स्थगित
हो जाता या फिर रद्द हो जाता।
उन्होंने
इसे करप्ट प्रैक्टिस व रिश्वत बताया।
उन्होंने कहा कि सत्ता में 100 साल
बने रहिए लेकिन जनता की नजर में
सही बने रहिए। पहले जब पोलिंग हो
जाती थी तो राजनीतिक दलों को उस
गाड़ी का नंबर दिया जाता था जिससे
कि मतदान की पेटियां को ले जाया
करते थे। चुनाव के बाद विभिन्न
राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता
मोटरसाइकिल से इन गाड़ियों के पीछे
स्ट्रांग रूम तक जाते थे। स्ट्रांग रूम में
ईवीएम या फिर बैलेट पेपर कीपेटियां
रखी जाती थीं, तो विभिन्न राजनीतिक
दलों के प्रतिनिधि वहां मौजूद होते थे।
इसके उपरांत स्ट्रांग रूम सील किया
जाता था। अब यह प्रक्रिया प्रैक्टिस में
नहीं रही। उन्होंने आगे कहा, “खाली
ईवीएम को स्ट्रांग रूम में नहीं रखा
जाना चाहिए